नई दिल्ली। एफसीआई के 370 मजदूरों को महीने में साढ़े चार लाख रुपए सैलरी मिलने पर सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में है। कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा है कि एफसीआई में काफी गड़बडि़यां हैं। कोर्ट ने केन्द्र सरकार से भी पूछा है कि इन गड़बडि़यों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए।
एफसीआई पर कोर्ट की टिप्पणी
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एके सिकरी की बेंच ने कहा, ‘एफसीआई के मजदूरों का इतिहास हिंसक रहा है। कई अफसरों की हत्याएं हुई हैं। वहां गिरोह काम कर रहे हैं। एफसीआई उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन चुका है। इसे मजदूरों और यूनियनों ने बंधक बना लिया है। यहां निश्चित तौर पर गड़बड़ी हो रही है।’ कोर्ट ने कहा, ‘एफसीआई को सालाना 18 सौ करोड़ का घाटा हो रहा है। लेकिन यहां के मजदूर अपने नाम पर दूसरों को काम पर लगा रहे हैं।’
इस मामले का खुलासा वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया है। इस कमेटी की रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने भी आश्चर्य जताया कि आखिर मजदूरों की सैलरी देश के राष्ट्रपति से भी ज्यादा कैसे हो सकती है।
दरअसल, मुख्य न्यायधीश टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के आदेश के खिलाफ एफसीआई वर्कर्स यूनियन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र के लिए कुछ निर्देश पारित किए थे।
वहीं, इस मामले में एफसीआई के वकील ने बेंच से कहा कि कर्मचारियों को महीने में एक लाख रुपए कमाने के लिए कई तरह के लालच दिए जाते हैं। इस पर पीठ ने पूछा कि यह लालच किस तरह के हैं। साथ ही एफसीआई को चेतावनी दी है कि अगर कमेटी की सिफारिशों पर ध् यान नहीं दिया गया तो एक और बड़ी कमेटी बनाई जाएगी।