बंदूक की पांच गोलियां कुछ नहीं कर पाईं, लेकिन गरीबी की गोली ने मार दिया उसे

कानपुर। बंदूक की पांच गोलियां भी उसका कुछ नहीं कर पाईं। गोलियां लगने के बाद वह साइकिल चलाकर गया। अस्पताल में भी स्ट्रेचर में लेटने के बजाय बैठकर गया। और पुलिस को भी पूरे होशो हवास के साथ बयान दिया। लेकिन वह गरीब था न, इसलिए सरकारी अस्पताल की लापरवाही की भेंट चढ़ गया। यदि किसी प्राइवेट बड़े अस्पताल में इलाज होता तो उसकी जान बच सकती थी। परिजनों के साथ साथ पुलिसकर्मी भी हीरालाल की मौत के बाद यह बात कहते नजर आये।
गोलियां लगी फिर जी मोहल्ले तक आ गया
मंगलवार की रात छत्तीसगढ़ के रहने वाले पीलाराम के पुत्र हीरालाल को एक पल्सर सवार ने छोटी सी बात पर पांच गोलियां मार दी थी। मामला केवल साइकिल हटाने भर का था। इतने पर ही बाइक सवार ने उसे गोलियां मार दी थी। गोली लगने के बाद भी हीरालाल साईकिल से मोहल्ले तक जा पहुंचा था। भर्ती कराये जाने पर भी उसकी हिम्मत ने जवाब नहीं दिया था। डॉक्टरों को भी खूब समय मिला। लेकिन समय से आपरेशन न होने और अधिक खून निकल जाने से उसकी मौत हो गई।
प्राइवेट अस्पताल में होता तो जान बच जाती
इसी बात से लोग यह कहने को मजबूर हो गए कि यदि उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया जाता तो वह हिम्मती बच्चा बच सकता था। लेकिन गरीब होने के चलते ही पिता पीलाराम ने बेटे को हैलट अस्पताल में भर्ती कराया था। बेटे की मौत के बाद पीलाराम और मौजूद पुलिस कर्मी यही कहते नजर आये कि वह गरीब न होता तो उसकी जान बच जाती। पांच गोलियां तो उसकी हिम्मत को नहीं तोड़ पाई। लेकिन गरीबी ने जिंदगी की डोर जरूर तोड़ दी।
पिता के सपने हुए चकनाचूर
हीरालाल का पिता वैसे तो राजमिस्त्री है। एक प्लाट में झोपड़ी बनाकर रहता है। वह अपने बड़े बेटे हीरालाल को इंजीनियर बनाना चाहता था। इसलिए अपनी हैसियत से बड़े स्कूल में उसे पढ़ा रहा था। लेकिन बाइक सवार की हैवानियत ने बेटा और सपने दोनों छीन लिए।