बंदरों की चतुराई बनी अफसरों का सिरदर्द

रुद्रप्रयाग। बंदरों की चतुराई से वन विबाग के अधिकारी और कर्मचारी दोनों ही परेशान हो गये हैं। वन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि शहर से अभी तक 62 बंदरों को पकड़कर जंगलों में छोड़ा गया है। लेकिन स्थानीय लोगों की शिकायतें हैं कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। बंदरों की चतुराई इस बात से भी समझी जा सकती है कि विभाग तो उन्हें जंगलों में छोड़ रहा है लेकिन अपनी चतुराई के बूते वे वापस गांव और फिर शहर तक आ जा रहे हैं।
बंदरों की चतुराई से निपटने वन विभाग का नया पैंतरा
शहर में बंदरों को पकड़ने का अभियान शुरु हुए करीब महीना भर हो गया है, लेकिन उन्हें पकड़ने के लिये केवल एक ही पिंजरा है जिससे अभियान सफल नहीं हो पा रहा है। रुद्रप्रयाग के प्रभागीय वनाधिकारी राजीव धीमान ने कहा कि बंदरों की वापसी से निपटने के लिए अब एक नया तरीका निकाला गया है। इसके तहत अब जंगलों में छोड़ने से पहले बंदरों पर रंग लगाया जाएगा जिससे उनकी पहचान हो सके।
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दरअसल, रुदप्रयाग शहर और जिले के गांव दोनों ही बंदरों के आतंक से काफी त्रस्त हैं। इस आतंक के चलते बाजार जाने वाली महिलाओं और बच्चों का स्कूल जाना दूभर हो गया है। पिछले साल आतंकी बंदरों ने 31 लोगों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। जनता के आक्रोश को देखते हुए ही विभाग ने बंदरों को पकड़ने के लिये अभियान भी चलाया। छह सदस्यीय टीम को बंदरों को पकड़ने का प्रशिक्षण देने के लिए दिसंबर में नैनीताल भेजा गया। प्रशिक्षित टीम लौट के आई और 26 दिसंबर से अभियान भी शुरू किया गया। लेकिन रुद्रप्रयाग शहर में विभाग को अभियान केवल इसलिए बंद करना पड़ा क्योंकि पिंजरे को देख बंदर भागने लगे। और उसके पास भी फटकना छोड़ दिया। इसके बाद वन विभाग ने अगस्त्यमुनि का रुख किया। रुद्रप्रयाग में तो अभियान अभी तक शुरू नहीं किया गया, लेकिन जिले के दूसरे हिस्सों में भी अभियान औपचारिक बनकर ही रह गया है।
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डीएफओ धीमान के मुताबिक शासन से धनराशि मंजूर हो गई है। इस राशि से बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरे और अन्य उपकरण बहुत जल्द खरीदे जाएंगे। उन्होंने बताया कि हरिद्वार में एक आपरेशन थियेटर भी तैयार किया जा रहा है। इसके बाद बंदरों को नसबंदी के लिए वहां भेजा जाएगा। फिलहाल कर्मचारियों को पहचान के लिए बंदरों पर रंग लगाने के आदेश दिए गए हैं।