ख़ुदकुशी पर बंद हो राजनीति

ख़ुदकुशी पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। वह चाहे दलित करे या फिर सवर्ण। ख़ुदकुशी हमेशा तकलीफदेह होती है। माता-पिता के लिए। पति-पत्नी के लिए। भाई के लिए। दोस्तों के लिए। नाते-रिश्तेदारों के लिए। गली-मोहल्ले वालों के लिए। पूरे समाज के लिए। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित की ख़ुदकुशी के बाद जिस तरह देश भर की राजनीतिक पार्टियों ने बवाल मचाकर रखा है, उससे रोहित की वापसी नहीं होनी है। उसके माता-पिता को बिना रोहित के ही आगे की जिंदगी काटनी होगी।
ख़ुदकुशी फिर न हो इसके लिए इंतजाम करे विश्वविद्यालय
हालात भी गवाही दे रहे हैं कि रोहित मेधावी था। एक मेधावी का जाना देश के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है और परिवार के लिए भी। ऐसे में जाँच उन हालातों की होनी चाहिए जिनकी वजह से रोहित ने ख़ुदकुशी की। विश्वविद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह पुनरावृत्ति रोकने के लिए हर संभव कदम उठाये। उन लोगों को चिन्हित करे जिनकी वजह से एक मेधावी छात्र इस दुनिया से चला गया। रोहित को इस हालत में पहुँचाने वालों को सजा जरूर मिलनी चाहिए। अब जाँच चाहे पुलिस करे या फिर विश्वविद्यालय। भारत सरकार करे या फिर राज्य सरकार। सबका प्रयास यही होना चाहिए कि दोषी या दोषियों को सजा जरूर मिले। इससे उनके समर्थकों को सबक मिलेगा और संभव है कि ख़ुदकुशी दोबारा कम से कम कैम्पस में न हो। ऐसी घटनाओं के बाद घटिया राजनीति की शुरुआत को भी गन्दी बात कहना चाहिए। उसकी निंदा की जानी चाहिए। चाहे वह कोई भी दल कर रहा हो।
किसी भी सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश-प्रदेश में शांति-व्यवस्था कायम रखे। रामराज की परिकल्पना पर काम करे। पर, ऐसा तो हो नहीं सकता कि 125 करोड़ की आबादी वाले भारत जैसे देश में अमन ही रहेगा। लेकिन यह बहुत ही घटिया हरकत कही जानी चाहिए, जिसके तहत विरोधी दल हर छोटी-बड़ी वारदात के बाद सरकारों को घेरने लगते हैं। सरकार में शामिल लोग अपनों को बचाने के लिए कमर कसकर मैदान में उतर जाते हैं। चाहे रोहित की ख़ुदकुशी मामले में मंत्री दत्तात्रेय का मसला हो या फिर सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे का ललित मोदी कनेक्शन या फिर व्यापम घोटाले में शिवराज चौहान, भाजपा नेता सही-गलत छोड़ जुट जाते हैं अपनों को बचाने में। इस चक्कर में विरोधियों को और हमलावर होने का मौका मिलता है। सरकार किसी की हो, उसमें शामिल लोग भी इसी समाज के हैं। दोषी को दोषी मान उसे सजा दे देने से विरोधियों का मुंह बंद किया जा सकता है, पर देश के किसी भी राजनीतिक दल में इतनी ताकत कहाँ। आज किसी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, तो कई और पर भी करनी पड़ेगी। क्योंकि राजनीतिक दल-दल में अधिकतर ऐसे ही हैं। मतलब दागी। पाक दामन के लोगों को भारतीय राजनीति में तलाशना अँधेरे में सूई खोजने जैसा है।
रोहित की ख़ुदकुशी के बाद हुए खुलासे यह बताने को काफी हैं कि विश्वविद्यालय में सब कुछ सामान्य नहीं चल रहा है। केन्द्रीय विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पत्रों का जवाब न दे, इसे अनुशासनहीनता ही माना जाना चाहिए। अगर इन पत्रों का जवाब दिया गया होता तो संभव है कि रोहित को जान नहीं देनी पड़ती। क्योंकि लिखा-पढ़ी तो रोहित ने भी काफी कर रखी थी। इसका मतलब साफ है कि वह कहीं न कहीं व्यवस्था से परेशान था। यदपि, किसी भी सूरत में ख़ुदकुशी किसी को नहीं करनी चाहिए। इसे हमेशा ही कायरता कहा गया है और आगे भी कहा जाएगा, पर जिस परिवार से कोई जाता है, उस पर तो दुखों का पहाड़ ही गिरता है। मरने वाला अकेले नहीं मरता, उससे जुड़े लोगों की भी तकरीबन मौत ही हो जाती है। मेरी भी संवेदना रोहित के परिवारीजनों के साथ है। और मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत सरकार इस मामले में जाँच कराकर कोई न कोई ठोस कार्रवाई जरूर करेगी।