50 भाजपा सांसदों के सिर लटकी तलवार, लोकसभा चुनावों में नहीं मिलेगा टिकट!

लखनऊ। भाजपा के मिशन 2019 को नई दिशा देने के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने नई रणनीति के तहत काम करने का मन बना लिया है। शाह के हाल ही में यूपी के दौरे पर आने के बाद से ही इस बात की कुलबुलाहट सभी में है कि भाजपा के कई सांसदों के आगामी लोकसभा चुनावों में टिकट काटे जा सकते हैं। इस बात का भी जिक्र किया जा रहा है कि शाह ने इस बाबत सभी सांसदों के चार साल के कार्यकाल का ब्योरा निकाला है। उसी ब्यौरे के आधार पर सभी का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया गया। साथ ही इस बात का भी निर्णय लिया गया कि किन-किन सांसदों का पत्ता अगले चुनावों में साफ़ करना है। खबर है कि ऐसे करीब 50 सांसद हैं, जिनपर खतरे की तरवार लटक रही है।
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बता दें ऐसे सांसदों में से कुछ पिछड़े और दलित सांसद भी हैं, जो भाजपा के खिलाफ ही बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। कुछ सांसदों के कदाचरण की शिकायतें पीएम नरेन्द्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास हैं। इनके स्थान पर चुनाव मैदान में उतारने के लिए नए चेहरे तलाशे जा रहे हैं।
खबरों के मुताबिक़ इसके चलते भाजपा के सभी 68 सांसदों की धड़कनें तेज हो गई हैं। टिकट कटने के अंदेशे में चार साल तक अपने संसदीय क्षेत्र में काम न करने वाले सांसदों ने आरएसएस से लेकर प्रदेश व क्षेत्रीय संगठनों के बड़े पदाधिकारियों के दरवाजों की परिक्रमा करनी शुरू कर दी है।
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दरअसल, पिछली चार जुलाई को भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष काशी, अवध और गोरखपुर क्षेत्रीय संगठनों के साथ लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए मिर्जापुर और वाराणसी आए।
उसके बाद लोकसभा की यही तैयारी करने के लिए पांच जुलाई को आगरा आए और यहां उन्होंने ब्रज, कानपुर और पश्चिम क्षेत्रीय संगठनों के साथ बैठक की। उनके जाने के बाद ही सोशल मीडिया ही नहीं कुछ यूपी के सियासी हलके में मौजूदा 50 सांसदों को दोबारा प्रत्याशी न बनाए जाने की अटकलें लगने लगीं।
गौरतलब है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से भाजपा के अपने 71 और सहयोगी दल अपना दल के दो सांसद जीते थे। इनमें गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव भाजपा हार चुकी है। ऐसे में मौजूदा समय में भाजपा के 68 सांसद रह गए हैं।
हालांकि, यह भी सही है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यूपी में अपनी पार्टी के सभी 68 सांसदों के रिपोर्ट कार्ड तैयार कर लिए हैं। इनमें आधे सांसदों के चार साल के कामकाज को निराशाजनक बताया गया है। इन सांसदों के बारे में नेतृत्व के पास यह फीडबैक है कि दोबारा इन्हें प्रत्याशी बनाया तो क्षेत्रीय जनता इन्हें जिताकर संसद नहीं भेजेगी।