हाल-ए-तहसील का ‘भौकाल’ लेखपाल का
अगर वरासत बनने में जिंदगी घिसी जा रही है तो इसमें दोष आपका नहीं है। दोष उस शख्स का है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। आखिर उसने ही तो आपको वरासत बनवाने के लिए छोड़ दिया। ना वो ऊपर जाता ना वरासत बनाने की झंझट होती।

हेलो! लेखपाल साहब क्या हुआ मेरी वरासत का उसकी वजह से सारे काम रुके हुए हैं। साहब बताइए क्या हुआ कब तक दर्ज हो जाएगी वरासत। जवाब आता है! बस कुछ दिन की और बात है। कुछ दिन की और बात करते-करते डेढ़ महीने निकल चुके हैं लेकिन अब तक वरासत हाथ नहीं आयी। अब धीरज रखने की बात है। आखिर डेढ़ महीने कलेजे पर पत्थर रख कर इंतजार किए ना थोड़ा और कर लेंगे तो क्या बुरा हो जाएगा। आखिर लेखपाल साहब भी क्या करें ठहरे अकेले और जिम्मा दे दिया पूरे 5-6 इलाके का ऊपर से अधिकारी एक जान को हजारों काम थमा देते हैं। अब लेखपाल साहब बैठकर वरासत चढ़ाएं यह फिर काम देखें।
दरअसल कुछ कामों के लिए जरूरत होती है बाबू (रजिस्ट्रार) की और बाबू तो बाबू होते हैं कर ही क्या सकते हैं। सुनने में आता है कि कई तहसीलों में एक ही बाबू हैं! अब एक ही बाबू बताओ कितना काम करेगा? उसके ऊपर इतनी सारी फाइल लदी होती है कि बेचारा फाइल के नीचे खुद ही दब जाता है। फिर भी वो आपके लिए कैसे भी करके सांस लेते हुए धीरे-धीरे काम निपटाता है। अब इसमें जनता परेशान होती है तो बताओ किसकी गलती है? लेखपाल साहब की? बाबू की? या फिर सरकार की। आप जिसको भी दोष देना चाहें दे सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि दोष आपका है जो वरासत बनवाने गए। नहीं-नहीं नहीं दोष आपका भी नहीं है। दोष उस शख्स का है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा और आपको वरासत बनवाने के लिए छोड़ गया। ना वह ऊपर जाते और ना ही वरासत बनाने का झंझट होता।
लेखपाल साहब अपनी जेब से पैसे कहां से भरेंगे?
खैर जो भी हो क्या ही कहा जाए लेखपाल साहब अपना काम कर दिए उनके जिम्मे हजार काम है। ऊपर से दौड़ने के लिए जो भत्ता मिलता है 100 रुपये। बताओ गज्बे है ना? यहां 100 रुपये लीटर पेट्रोल हुआ पड़ा है वहां 100 रुपये उनको भत्ता मिलता है। मेरे मित्र ‘दीपक’ जो गोण्डा से हैं एकदम भौकाली लेखपाल। गुस्से में कहते हैं इससे अच्छी नौकरी तो सफाई कर्मचारी की है पैसे के मामले में ना की भौकाल के मामले में। लेखपालों की तनख्वाह का तो छोड़ ही दें महीने में कब आएगी इसका पता तो लेखपाल साहब को भी नहीं होता। ऊपर से लोग कहते रहते हैं लेखपाल साहब बिना पैसा लिए काम नहीं करते हैं। ठीक ही तो है कैसे काम करेंगे बिना पैसे के? आखिर बताओ कौन सा काम होता है बिना पैसे के। आपको क्या लगता है लेखपाल साहब का इतना बड़ा पेट है कि वह पैसे बचा लेंगे? ऐसा थोड़ी होता है सब लेखपाल एक जैसे नहीं होते कुछ इतने ईमानदार होते हैं कि आप पैसे दो तो आपको डांट देंगे। लेकिन हाल-ए-तहसील का लेखपाल साहब अपनी जेब से पैसे कहां से भरेंगे आपके काम के लिए।
जो गरीब है, बेचारा है वो पैसे नहीं दे सकता तो काम में थोड़ी लेट लतीफी हो जाती है तो इसमें लेखपाल साहब की गलती थोड़ी है। गलती उसकी है जो गरीब पैदा हुआ। अरे कुछ करो गरीबी मिटाओ देश का भी कल्याण होगा अधिकारियों का भी कल्याण होगा। साहब यह दुनिया जो है भावनात्मक तरीके से नहीं पैसे से चलती है। हाल में एक फिल्म आई थी ‘कागज’ देखी होगी आपने। इसमें बताया गया है कि लेखपाल साहब का क्या भौकाल होता है लेखपाल साहब अगर एक बार तुम को कागज में मार दिए तो तुम समझो मर गए।
तुमको जिंदा होने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। हो सकता है खुद को जिंदा कराने के लिए अपनी खुद की जिंदगी भी आपको खर्च करनी पड़ जाए। और हां,, फिर भी आप जिंदा हो जाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह ताकत होती है लेखपाल की। फिल्म से हटकर आज वास्तविकता थोड़ी और है।अधिकारियों को कर्मचारियों से ज्यादा खास मतलब नहीं होता काम को छोड़कर। काम नहीं हुआ तो अधिकारियों से डांट पक्की है। सब जगह यही हाल है प्राइवेट सेक्टर हो या गवर्नमेंट। ऐसे में अधिकारी को खुश करने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। अब खुश करने के क्या तरीके हैं आपको अच्छे से पता है।
आखिर में दर्द लेखपाल का
ऐसे में अब लेखपाल साहब लोग अधिकारी की जी हजूरी करें या फिर कुछ काम कर लें। बहुत काम होता है लेखपालों के जिम्मे जैसे- खसरा खतौनी का रिकॉर्ड अपडेट रखना। गांव-गांव मोटरसाइकिल में किक मार के घूमते हुए भू स्वामियों का सत्यापन करना। तहसील दिवस और समाधान दिवस में जाना। विभागीय जांचों के अलावा अन्य जांच भी करना। जनगणना और कृषि गणना के अलावा अन्य गणनाएं करना। इन सब के बावजूद भी बेचारे ले देकर आपका काम कर ही देते हैं तो बताओ कितने कितने भले हैं लेखपाल साहब। अरे भाई एक अकेली जान कितना करेगी काम खुद ही बताओ? इसीलिए खुद भी खाओ और भूखे को भी खिलाओ। आप को खिलाना ही पड़ेगा क्योंकि सिस्टम सड़ा हुआ है। जब दीमक नीचे से लगा होता है तो ऊपर के प्लाई को दोष नहीं देना चाहिए इस बात को समझिए और दीमक को खत्म करिए।
एक बात और बताएं जहां एक तरफ प्राइवेट सेक्टर में भी 2-3 सालों में प्रमोशन हो जाता है, वहीं दूसरी तरफ लेखपाल साहब का प्रमोशन 30-35 सालों में भी नहीं हो पाता। लेखपाल बिना प्रमोशन पाए ही लेखपाल पद पर से रिटायर्ड हो जाते हैं। पर कहते है ना की भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। मौजूदा परिस्थिति में कानूनगो रिटायर हो रहे हैं प्रोमोशन हो नहीं रहा। आप बिना प्रोमोशन के ही लेखपालों को प्रभारी कानूनगो व प्रभारी रजिस्ट्रार कानून गो बनाया जा रहा है। यही हाल-ए- है ‘तहसील’ और लेखपाल का।
यह लेखक के निजी विचार हैं।
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