ट्रिपल तलाक के जवाब में कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव, देश की आधी आबादी को लेकर उठाई आवाज

नई दिल्ली। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे सभी राजनीतिक दल इन दिनों अपना वोटबैंक मजबूत करने की कवायद में लगे हुए है। इसी क्रम में इस बार कांग्रेस और बीजेपी भी जनता को अपने पक्ष में करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। एक तरफ जहां मोदी सरकार ट्रिपल तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाकर देश की आधी आबादी को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी महिला वोटबैंक मजबूत करने के लिए महिला आरक्षण की मांग उठाई है।
दरअसल, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर एक बार फिर महिला आरक्षण के लिए आवाज उठाई है। अपने इस पत्र में राहुल गांधी ने पीएम मोदी से मांग की है कि 18 जुलाई को संसद में शुरू होने वाले मानसून सत्र में मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल लेकर आए। राहुल गांधी का कहना है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस मोदी सरकार का पूरा साथ देगी। बताया जा रहा है कि इस संबंध में कांग्रेस एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर इस चिट्ठी को जारी करेगी।
यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस ने महिला आरक्षण बिल को लेकर आवाज बुलंद की है। इसके पहले यह मुद्दा कांग्रेस की ओर से यह मुद्दा बीते वर्ष सितंबर माह में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से उठाया गया था। तब उन्होंने तब उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर लोकसभा में महिला आरक्षण बिल को पास करने का निवेदन किया था।
पिछले साल कांग्रेस ने शीतकालीन सत्र के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों से संसद और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के समर्थन में 33 लाख हस्ताक्षर जमा किए थे। बड़ी बड़ी कागज की पेटियां लेकर देश के अलग-अलग प्रदेशों से महिला कांग्रेस की कार्यकर्ताओं और नेता दिल्ली पहुंचीं थीं। महिला कांग्रेस के पदाधिकारियों और सदस्यों ने 33 लाख हस्ताक्षर जमा करने का दावा किया था।
बता दें कि वर्ष 2010 में महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में पास कराया गया था। मगर लोकसभा में यह विधेयक पारित नहीं हो सका था। विधेयक के तहत संसद और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव है। महिला आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन होना है। संविधान में संसद और विधानसभा में महिला आरक्षण को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है। 1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के जरिए पंचायत और नगर निकाय में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की गई थीं।