जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 6 महीने ही रहेगा राज्यपाल शासन, इसके बाद फिर…

नई दिल्ली। आखिरकार मंगलवार को बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन का अंत हो ही गया। बीजेपी ने महबूबा पर कई आरोप लगाने के बाद समर्थन से हाथ खींच लिया। जिसके बाद से जम्मू की सीएम ने भी अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है। इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति ने राज्यपाल शासन को तुरंत ही मंजूरी मिल गई। राज्यपाल शासन के बाद से लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसे हालातों में राष्ट्रपति शासन लगता है तो यहां राज्यपाल शासन क्यों?
राज्यपाल एन . एन . वोहरा ने शासन को लागू करने के लिए पत्र भेजकर आग्रह किया था, जिसको मंजूरी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी थी। ऐसो तो सरकार के विफल रहने में राष्ट्रपति शासन लगता है फिर यहां राज्यपाल क्यों.. आइए बताते हैं.. दरअसल, इसके पीछे संविधान है.. संविधान के मुताबिक धारा 92 के तहत राज्य में छह माह के लिए राज्यपाल शासन लागू किया जाता है लेकिन ऐसा राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही हो सकता है।
भले भारत के संविधान के जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया हो, लेकिन वहां के नियम-कानून हमारे संविधान से बहुत अलग है। जिसके तहत एक ये ऐसा नियम भी आता है। देश के अन्य राज्यों में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
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राज्यपाल शासन के अंतर्गत या तो राज्य विधानसभा निलंबित रहती हैं या तो खत्म कर दी जाती हैं। साथ ही हालात वैसे ही रहते हैं तो इस शासन को आगे भी बढ़ा दिया जाता है। जिसका मतलब अगर 6 महीने बाद भी वहां कोई सरकार नहीं बनती है तो संविधान के मुताबिक उस शासन की अवधि को आगे बढ़ा दिया जाता है, लेकिन फिर उस बढ़ी हुई अवधि को राष्ट्रपति शासन बना दिया जाता है। यह सारा कुछ संविधान के नियमों के अंतर्गत ही होता है। जिसके बाद सारे नियम कानूनों को लागू किया जाता है।
क्या कहता है भारत का संविधान-
अगर बात करें भारत के प्रदेशों में लगने वाले राष्ट्रपति शासन की तो यह जम्मू से बिल्कुल अलग है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं। आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है। ऐसा जरूरी नहीं है कि वे राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही करे।राष्ट्रपति शासन लगाये जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अप्रूवल किया जाना जरूरी है।