एक संगीत जिसे सुनकर बह जाती हैं खून की नदियां

क्या आपने कभी सुना है ऐसा संगीत जिसे सुनकर खून की नदियां बह जाती हैं। लोग कत्ल तक करने पर उतारू हो जाते हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कर भी देते हैं। यह संगीत आज भी अपने मुल्क में जिंदा है और गाया जाता है। और खून खराबा भी होता रहता है।
बात कर रहे हैं वीर रस प्रधान आल्हा गीत की। कहते हैं कि इस धुन को सुनने के बाद मुर्दा खून भी उबाल मारने लगता है। बस जैसे ही ये धुन किसी के कानों में दस्तक देती है खून की नदियां बहने लगती हैं।
आल्हा के बोल कुछ ऐसे होते हैं-
आठ बरस तक कुकुर जीवै, बारह वर्ष तक जीवै सियार
अठरा बरस तक क्षत्री जीवै, आगै जीवन को धिक्कार।
इसी तरह से युद्ध का वर्णन करते समय शब्दों और छन्दों का वर्णन बेमिसाल होता था-
पहले लड़ाई हुई तोपों की, फिर बन्दूके लई उठाय,
चलै गोलियां पानीपत का जो बख्तर को देय उड़ाय,
भाला चल रहा नागदमन का, जो पसली में जाय समाय,
चली सिरोहि माना साही कोटा बूंदी की तलवार,
ये गत हो गयी रण खेतों में बहने लगी खून की धार।
पहले युद्ध के समय अपने लड़ाकों में जोश भरने के लिए मारू बाजे और वीरता की ज्वाला भर देने वाले आल्हा गायक साथ साथ रहा करते थे। आज आल्हा गायक मनोरंजन के लिए गाते हैं। लेकिन कई बार मनोरंजन की जगह दुश्मनी की भावना जोर मारने पर कत्लेआम भी हो जाते हैं। वस्तुतः यह गीत मातृभूमि की रक्षा के लिए दुश्मन के खात्मे को ललकारता है।