रानी शंकरगढ़ को हाईकोर्ट में करारी शिकस्त

इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद के शंकरगढ़ ब्लाक के 46 गांवों में फैले खनिज पट्टों पर से रानी शंकरगढ़ राजेन्द्र कुमारी की दावेदारी समाप्त कर दी है। दो जजों की पीठ सिविल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सरकार की अपील स्वीकार कर ली है। सिविल कोर्ट ने दो जुलाई 1997 को रानी साहिबा के पक्ष में डिक्री देते हुए प्रदेश सरकार को 46 गांवों में फैले खनन पट्टों में हस्तक्षेप व रानी शंकरगढ़ के कब्जे में दखल देने से रोक लगा दी थी। सरकार ने सिविल जज के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी।
सरकार की अपील मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की अध्यक्षचता वाली खण्डपीठ ने सरकार से कहा है कि वह रानी शंकरगढ़ से दावे की तारीख (1969) से अथवा उससे पहले से रानी द्वारा सिलिकासैण्ड के खनन की रायल्टी वसूल करें। कोर्ट ने सरकार को रायल्टी की वसूली निर्धारित दर से कानून के मुताबिक करने को कहा है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि दर का निर्धारण नहीं हो पा रहा है तो इसे नौ प्रतिशत वार्षिक की दर से वसूला जाए। कोर्ट ने उन सभी 46 गांवों की खनन पट्टा नये सिरे से आवंटित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि रानी साहिबा के पक्ष में 16 अप्रैल 1947 व 27 अप्रैल 1959 को किया गया पट्टा स्थायी पट्टा था जो कि माइंस मिनरल्स रेग्युलेशन डेवलपमेंट एक्ट 1957 के प्राविधानों के खिलाफ है इसलिए इसे शून्य घोषित किया जाता है।
कोर्ट ने उनके द्वारा किये जा रहे खनन को अवैध घोषित कर दिया। प्रदेश सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अशोक कुमार पाण्डेय ने सरकार का पक्ष रखा तथा कहा कि आजादी से पहले से रानी साहिबा के पक्ष में खनन का स्थायी पट्टा वर्तमान में लागू कानून के विपरीत है।