मौत पर भी चलती है शायरों की शायरी, मौत को आसान बना देगी ये शायरी

मौत का सामना तो एक न एक दिन सभी को करना ही है लेकिन इस सच्चाई को जान कर भी लोग भय खाते हैं। इसका दूसरा पहलू यूं भी है कि कई बार ज़िंदगी ही मौत जैसी लगती है। शायरों ने इस पर क्या कहा जानें इन शायरी के साथ
तन को मिट्टी नफ़स को हवा ले गई
मौत को क्या मिला मौत क्या ले गई
– हीरा देहलवी
मौत अंजाम-ए-ज़िंदगी है मगर
लोग मरते हैं ज़िंदगी के लिए
– अज्ञात
आदमी को चुप रहना मौत की निशानी है
– ताबाँ अब्दुल हई
हम चाहते थे मौत ही हम को जुदा करे
अफ़्सोस अपना साथ वहाँ तक नहीं हुआ
– वसीम नादिर
ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी
– अर्श मलसियानी
हिज्र-ए-जानाँ में जी से जाना है
बस यही मौत का बहाना है
– मर्दान अली खां राना
वो की तुम ने सितमगारी कि तौबा
– हक़ीर
किसी के क़दमों से रस्ते लिपट के रोया किए
किसी की मौत पे ख़ुद मौत हाथ मलती रही
– अदनान मोहसिन
मौत से शिकायत क्या मौत का बहाना था
– नसीम शाहजहाँपुरी
मौत का आना तो तय है मौत आएगी मगर
आप के आने से थोड़ी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
– मुनव्वर राना
तुम न आए तो मौत आई है
– फ़ानी बदायुनी
मौत पे मेरी रोता था
मेरा क़ातिल भोला था
– आरिफ हसन ख़ान