बंदी ने कहा- जेल में फोन चाहिए, अदालत ने कहा- वापस जाईये, याचिका खारिज
याची की तरफ से उसे तीन माह के पैरोल (अल्प अवधि जमानत) पर रिहा करने और लॉक डाऊन की वजह से परिजनों से सम्पर्क करने को जेल में फोन की सुविधा उप्लब्ध कराने के निर्देश राज्य सरकार देने की गुजरिश की गयी थी.

लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लॉकडाऊन की वजह से जेल में फोन की सुविधा देने की एक बन्दी की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए पैरोल पर रिहा करने से भी इंकार कर दिया.
न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी और न्यायामूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने जेल में बंद मोहन सिंह की याचिका पर यह आदेश दिया.
याची की तरफ से उसे तीन माह के पैरोल (अल्प अवधि जमानत) पर रिहा करने और लॉक डाऊन की वजह से परिजनों से सम्पर्क करने को जेल में फोन की सुविधा उप्लब्ध कराने के निर्देश राज्य सरकार देने की गुजरिश की गयी थी. याची का कहना था कि देशव्यापी लॉकडाऊन की वजह से उसके परिजन जेल आकर उससे सम्पर्क नहीं कर पा रहे हैं.
न्यायालय ने कहा कि कोविड -19 की वजह से अब कोई लॉकडाऊन नहीं है और वह जेल में फोन की सुविधा पाने का हकदार नहीं है. ऐसे में याचिका में मांगी गई राहत कानून की नजर में ठहरने लायक नहीं है, लिहाजा इसे खारिज किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि चूंकि याची ने समुचित फोरम में पैरोल की राहत नहीं मांगी है ऐसे में रिट क्षेत्राधिकार के तहत उसे यह राहत नहीं दी जा सकती है. इस टिप्पणी के साथ अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया.
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