जिस पेशे ने ली आंख की रोशनी उसी के सहारे पार कर रहे जीवन नैया

इलाहाबाद। हिम्मते मर्दां मरदये खुदा। हिम्मत की बदौलत इंसान दुनिया में कुछ भी कर सकता है। कभी-कभी कुदरत का फैसला भी इंसान की हिम्मत के आगे कमजोर पड़ जाता है।
इसकी बानगी आंख की रोशनी खो चुके इस शख्स में देखी जा सकती है जो सिर्फ अपने हौसले के दम पर आज भी वही काम कर रहा है जिस काम ने उसे नाबीना कर दिया।
शहर के दारागंज निवासी मोहम्मद आजाद के हुनर को देखने वाला हर कोई हैरतअंगेज हो जाता है। 28 साल पहले एक हादसे ने उनकी आंख की रोशनी ले ली लेकिन उन्होंने हौसले के दम पर रास्ता निकाल लिया।
टायर फटने से चली गई थी आंखों की रोशनी
करीब 28 साल पहले आजाद ट्रक के टायर में हवा भर रहे थे। टायर की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह तेजी से फट गया। टायर फटते ही वो दूर जा गिरे। इस दौरान उनके सिर व आंख में गहरी चोट आई। उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उनकी जान तो बच गई लेकिन आंख की रोशनी चली गई।
आजाद ने बताया कि उसका जन्म हडिया के गोठवा गांव में हुआ। इलाहाबाद में वो अपने बडे भाई के पास आ कर पंचर की दुकान में काम करने लगे। उसकी शादी 19 साल की उम्र में हुई थी। शादी के बाद वो परिवार लेकर अलग रहने लगे। शादी के करीब तीन साल बाद हुई इस घटना से उनके घर पर मुसीबतों का पहाड़ आ गिरा। ऐसे में उन्होंने अपनी साइकिल की खुद की दुकान खोल ली और अपने पैरों पर फिर से खडे हो गए।
जिम्मेदारियों की वजह से कर रहे काम
आंख की रोशनी खोने के बाद भी आजाद के जीवन में कोई काम प्रभावित नही हुआ। जीवन का हर काम वे आज भी बखूबी कर लेते हैं। आजाद के 5 बेटी व 3 बेटे सहित कुल आठ बच्चे हैं। इसमें से 3 लडकियों की व एक लडक़े की शादी कर चुके हैं। लेकिन 2 लडकी व दो लडके की जिम्मेदारी पूरी करना अभी बाकी है। घर की आर्थिक हालात भी ठीक नहीं होने के कारण बच्चों को उच्च शिक्षा नही दे पाए। शादी के बाद लड़के ने अपना घर अलग बसा लिया इस वजह से परिवार की पूरी जिम्मेदारी आजाद के कंधों पर ही आ गई। शहर में आजाद झोपडी बना कर रह रहे हैं। पक्के घर के लिए शुरू में सांसद से लेकर यहां के विधायक तक का चक्कर काट चुके हैं। लेकिन आज तक उन्हें मदद नहीं मिल पायी। आय का कोई बडा श्रोत नहीं होने के कारण उनकी गुजर बसर बडी कठिनाई से हो रहा है।
ऐसे बनाते हैं पंचर
पंचर चाहे जिस तरह की गाडी को हो। आजार हर तरह के पंचर बनाने में माहिर हैं। उनकी यह कला पूरे इलाहाबाद में प्रसिद्ध है। उन्होंने बताया पंचर बनाने के लिए ट्यूब में हवा भरने के बाद ट्यूब के जिस तरफ से हवा निकलती है उसे नाक की ओर कर लेते है। इसके बाद उसे बना कर तैयार कर देते हैं। वह पंचर बनाकर प्रतिदिन करीब 200 से 250 रूपए तक कमा लेते हैं।