शायरों ने भी खूब लिखे है चरागों पर जलाने और बुझाने वाले शेर

लखनऊ: जलता हुआ चराग़ जैसे रौशनी दिखाता हुआ अंधेरे को मिटाता है उसी तरह उम्मीद भी जीवन के अंधेरे में रौशनी का काम करती है। इसलिए शायरों ने चराग़ पर ख़ूब अल्फ़ाज़ कहे हैं।
शायरों की जुबान भी खूब चली है जलते, बुझते चरागों पर
अटा है धूल से कमरा है ताक़ भी सूना
कभी गुलाब सजे थे चराग़ जलता था
– क़य्यूम ताहिर
जानती है मिरे चराग़ की लौ
कौन से घर में रौशनी नहीं है
– इमरान आमी
राजस्थान में न्याय न मिलने पर दुष्कर्म पीड़िता ने लगाई खुद को आग
वस्ल हो तो चराग़ाँ भी कर लें
हिज्र की रात क्या चराग़ जले
– ज़िशान इलाही
कभी न होने दिया ताक़-ए-दिल को बे-रौनक़
चराग़ एक बुझा और दूसरा रक्खा
– इरफ़ान सत्तार
गोया कोई चराग़ रखा है चराग़ में
– अज्ञात
वो दिन नहीं किरन से किरन में लगे जो आग
वो शब कहाँ चराग़ से जलते थे जब चराग़
– शकेब जलाली
यहाँ चराग़ से आगे चराग़ जलता नहीं
फ़क़त घराने के पीछे घराना आता है
– इदरीस बाबर
जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है
इक चराग़ बुझता है इक चराग़ जलता है
– रसा चुग़ताई
बुझा है दिल तो न समझो कि बुझ गया ग़म भी
कि अब चराग़ के बदले चराग़ की लौ है
– शमीम करहानी
आख़िरी साँस ले रही थी रात
जब चराग़ आफ़्ताब से हारा
– संदीप शजर